एक गाँव में एक किसान रहता था। उसका नाम बुद्धराम था। वह बड़ा परिश्रमी और अपने काम में चतुर था। उसकी पत्नी को अपने पति का नाम पसंद नहीं था। एक दिन उसने अपने पति से कहा, "तुमसे मैं कब से कह रही हूँ कि अपना नाम बदल लो। पर तुम सुनते ही नहीं हो। मेरी सहेलियाँ तुम्हारे इस नाम के कारण मुझे चिढ़ाती रहती हैं। मुझे भी तुम्हारा यह नाम अच्छा नहीं लगता।"
बुद्धराम ने कहा, "क्या पागल जैसी बात करती है? नाम से क्या होता है? काम बड़ी चीज है। तू ही देख, तेरा नाम तो शांति है पर झगड़ती रहती है बात-बात पर ।"
शांति ने कहा, "तुम चाहे जो समझो। अगर तुम अपना नाम नहीं बदलोगे, तो मैं अपने मायके चली जाऊँगी।" बुद्धराम ने गुस्से में आकर कहा, "तू मेरे पास रहे या न रहे तेरी इच्छा। कल जा रही तो आज ही चली जा। मैं अपना नाम क्यों बदलूँ ? मेरे माता-पिता ने मेरा जो नाम रखा है, वही रहेगा।" शांति को गुस्सा आ गया। उसने उसी समय घर छोड़ दिया और मायके की राह ली।
वह आगे चली तो उसने दूर एक पालकी आती हुई देखी। पालकी को चार कहार कंधों पर रखकर ला रहे थे। आगे-आगे दो-चार नौकर-चाकर चल रहे थे। पास आने पर शांति ने एक नौकर से पूछा, "पालकी में कौन है, भैया?" नौकर ने उत्तर दिया, "सरदारपुर की राजकुमारी गरीबबाई। वे अपने मायके जा रही हैं।" शांति चुप न रह सकी, "कैसी विचित्र बात है। हैं तो राजकुमारी, पर नाम है गरीबबाई। कोई अच्छा-सा नाम रखा होता। आदमी क्या उत्तर देता ?" वह चुप रहा।
शांति कदम बढ़ाती गई। सामने से एक दुबला-पतला आदमी भागा जा रहा था। वह घबराया हुआ था। शांति ने उससे पूछा, "क्या बात है भैया ? क्यों भागते जा रहे हो ?" उसने उत्तर दिया। "क्या बताऊँ बहिन, वह जो आदमी मेरे पीछे आ रहा है, आज उसने मुझे खूब पीटा है। वह फिर भी पीछा नहीं छोड़ रहा है।" "क्या नाम है उसका?" शांति ने पूछा। उसने कहा, "कोमलचंद।" "और तुम्हारा नाम क्या है?" शांति ने पूछा। उसने उत्तर दिया, "शेरसिंह।" शांति बिना हँसे न रह सकी। वह मन ही मन बोली, "वाह रे भगवान ! तेरी लीला विचित्र है। शेरसिंह, गीदड़ की तरह भागा जा रहा है और कोमलचंद उसका पीछा कर रहा है। नाम और काम में कोई मेल ही नहीं है।"
पर शांति फिर भी लौटी नहीं। वह एक शहर
में से जा रही थी। मार्ग में एक हवेली के सामने सैकड़ों भिखारी एकत्र थे। एक सेठजी
उनको रुपया-पैसा भोजन-वस्त्र बाँट रहे थे। शांति से रहा न गया। वह उस भीड़ के पास
पहुँची। उसने एक भिखारी से पूछा, "यह सब क्या हो रहा है?" उसने उत्तर दिया, "इन सेठजी का जन्म-दिन है आज।
इसी खुशी में दान-दक्षिणा दे रहे हैं। तुमको चाहिए, तो यहीं
खड़ी रहो, कुछ-न-कुछ मिल ही जाएगा।"
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