एक कुएँ पर कुछ स्त्रियाँ पानी भर रही थीं। इन्हीं में चार स्त्रियाँ सरस्वती, मैना, गिरिजा और फूलवती थीं। चारों के एक-एक पुत्र था। पानी भरते-भरते बातें चल पड़ीं। वे अपने-अपने पुत्रों के गुणों की प्रशंसा करने लगीं।
सरस्वती कुछ पढ़ी-लिखी थी। पहले वही बोली, "मेरा बेटा ज्ञानचंद बड़ा विद्वान है। उसे हजारों श्लोक मुखाग्र हैं। मैं तो ऐसा बेटा पाकर खुश हूँ।"
फूलवती को मौन तोड़ना पड़ा। वह बड़ी नम्रता से बोली, "मैं क्या कहूँ दीदी! मेरा राम न विद्वान है, न गायक है और न पहलवान है। उसमें ऐसा कोई गुण नहीं है, जैसा तुम लोगों के बेटों में है। वह तो सीधा-सादा है।"
इन चारों स्त्रियों की
बातें एक वृद्धा सुन रही थी। वह भी पनघट पर पानी भरने आई थी। अब तक वे पानी भर
चुकी थीं। उन्होंने अपने-अपने घड़े उठाए और घर की राह ली। वृद्धा के पीछे-पीछे
चलने लगीं। वे कुछ ही कदम चली थी कि सरस्वती का बेटा ज्ञानचंद जोर-जोर से श्लोकों
का उच्चारण करता हुआ निकल गया। सरस्वती ने अपनी साथिनों की तरफ बड़े अभिमान से
देखा।
वे कुछ आगे बढ़ीं। कोई
बड़े सुरीले कंठ से गाता हुआ आ रहा था। उसके पास आ जाने पर उन्होंने देखा कि वह
मैना का बेटा मोहन था। मैना अपने बेटे की सुरीली तान सुनकर बहुत खुश हुई। मोहन
गाता हुआ आगे निकल गया।
वे आगे बढ़ती गईं। सबने देखा कि एक नौजवान अकड़ता हुआ सामने आ रहा था। उसकी चाल में हाथी जैसी मस्ती थी। उसका सीना तना हुआ था। गिरिजा ने अभिमान के साथ बताया कि वह उसका बेटा गणेश है। गणेश अपनी मस्ती में इन सबके पास से होता हुआ निकल गया।
वे कुछ और आगे चलीं तो उन्हें एक नवयुवक दिखा। वह जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ लपककर
उनके पास आया। उसने फूलवती के सिर पर से पानी का बर्तन ले लिया। उसने यह बर्तन अपने कंधे पर रखा और इनके आगे-आगे चलने लगा। वह फूलवती का बेटा राम था।वृद्धा की बात सुनकर तीनों का घमंड चूर हो गया। बात भी सच है। सपूत वही है जो अपने माता-पिता की सेवा करता है।
Thanks Anupam Bhai for all the issues of Ramayana and other uploads.
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