आज सुबह से ही मन बचपन की यादों में खोया सा हुआ था और आप सभी मित्रों के कमेंट्स फेसबुक में पढ़कर मन और बेचैन हो उठा. सो आज का दिन बचपन की उन्हीं यादों के साथ - जब पढ़ाई बहुत ही सहज थी और माता-पिता की ओर से हमें बचपन पूरी तरह जीने की आज़ादी भी थी. बस मस्ती और धमाल, सारा दिन घर से बाहर और दोस्तों का साथ.... काश! वो दिन कुछ पल के लिए भी वापस जी सकूं तो.
बचपन के दिनों में वापस जाना तो संभव नहीं है, पर कुछ यादें दुबारा मन में जिन्दा कर उस अनुभूति का एक छोटा सा हिस्सा भी याद कर लेना दिल को सुकून तो दे ही जाता है. तो बचपन में पढ़ी कहानी की श्रृंखला में आज पेश है - कक्षा 2 का प्यारा सा पाठ - लालबुझक्कड़ की सूझ
With Love
Anupam Agrawal and The ICE Project

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