शाम हो चली थी । चोरों की तरह अँधेरा छिपता हुआ आ रहा था । पशु-पक्षी अपने घरों को लौट रहे थे । राजा भोज और माघ कवि यह सब देखकर बहुत खुश हो रहे थे । लेकिन वे अब बहुत थक गए थे। उन्हें प्यास बहुत लगी थी । वे एक झरने पर पानी पोने गए । पानी पीकर चले तो अंधेरा हो चुका था। रास्ता समझ में नहीं आता था ।
काफी देर तक भटकने के बाद उन्हें दूर एक दिया जलता हुआ दिखा। दोनों
उधर ही गये। वहाँ पहुँच कर देखा कि एक झोपड़ी है उसमें एक बुढ़िया बैठी थी। राजा
भोज और माघ कवि ने उससे राम-राम की ।
राजा भोज ने पूछा कि ये रास्ता कहाँ जायेगा ?
बुढ़िया ने कहा- यह रास्ता तो कहीं नहीं जाता । मैं तो इसको कई सालों
से यहीं देख रही हूँ। हाँ, इस
पर चलने वाले ही जाते हैं, पर
तुम लोग कौन हो?
राजा भोज ने कहा -हम तो राही है. रास्ता भूल गये हैं।
यह सुनकर बुढ़िया हँसी । वह बोली- तुम राही कैसे ! राही तो दो ही
है-एक सूरज, दूसरा चन्द्रमा। सूरज दिन भर और चन्द्रमा रात भर चलता है ।
यह सुनकर राजा भोज चकरा गये। वह अभी चुप ही थे कि माघ कवि ने कहा-
बुढ़िया, हम तुम्हारे मेहमान हैं । हमें, रास्ता बता दो।
बुरिया ने कहा- जानती हूँ कि मेहमान वही है जो आए और चला जाए। लेकिन
मेहमान तो दुनियाँ में दो ही हैं - एक धन और दूसरी आदमी को उम्र ।
राजा भोज ने कहा- हम राजा हैं। हमें रास्ता बता दो ?
बुढ़िया बोली-
राजा भी दो ही हैं । एक इंद्र और दूसरे यमराज, बोलो तुम उनमें से कौन हो ?
अब माघ पंडित ने हाथ जोड़ लिए। बोले – हम तो गरीब हैं। तुम कृपा कर
रास्ता बता दो ।
बुढ़िया ने कहा – तुम गरीब कैसे ? गरीब तो दो हैं।
एक बकरी का बच्चा और दूसरी कन्या । तुमको में कैसे गरीब मान लूँ ? राजा भोज ने कहा- अच्छा तो हम हारे हुए हैं ।
बुढ़िया बोली- तुम कैसे हारे हुए हो । हारे तो दो ही हैं। एक कर्जदार
और दूसरा लड़की का बाप ।
अब राजा भोज और माघ पंडित चुप हो गये। तब बुढ़िया हँसी और बोली – मैं
जानती हूं कि तुम राजा भोज हो और ये कवि माघ पंडित। तुम्हारी परीक्षा मैंने ले ली।
अब इस रास्ते से सीधे चले जाओ। धारा नगरी पहुंच जाओगे ।
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