Sunday, May 1, 2011
Wednesday, March 9, 2011
इब्ने सफी और जासूसी दुनिया
पिछले कुछ दिनों से मैं चित्रकथाओं के इस ब्लॉग को एक नया रूप देने के बारे में गंभीरता पूर्वक विचार कर रहा था, मीना की कहानियाँ और प्राचीन मिस्र पर किताब इसी विचार की शुरुआत का नतीजा है. पूर्व में भी मैंने इस ब्लॉग पर कुछ प्रसिद्ध उपन्यास संजोये थे और अन्य विषयों पर चर्चा भी की थी परन्तु फिर भी इसका स्वरुप मुख्यतः कॉमिक्स ब्लॉग का ही रहा था, खैर अब मेरा विचार इस ब्लॉग को पूर्णतः नया रूप देखर इसे एक विस्तृत ब्लॉग के रूप में परिवर्तित करने का है, देखें आप और मैं कहा तक जा पाते हैं!
उपन्यासों से मेरा रिश्ता कम ही है परन्तु कुछ ऐसे उपन्यासकार हुए हैं जिन्हें मैं पसंद करता रहा हूँ - इन्ही में से एक हैं - संपूर्ण एशिया महादीप में सर्वाधिक जाने जाने वाले जासूसी उपन्यासकार इब्ने सफी. जो जासूसी उपन्यासों में रूचि रखते हैं उन्होंने इब्ने सफी की कृतियाँ अवश्य पढ़ी होंगी. उर्दू की इस महान शख्सियत की महानता को इन पन्नों में समेटना उतना ही अर्थहीन है जितना ताजमहल को केवल एक ईमारत कहना.
इब्ने सफी (एक संक्षिप्त परिचय) -
इब्ने सफी (मूल नाम असरार अहमद) का जन्म का जन्म 26 जुलाई 1928 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के नारा नामक स्थान में हुआ था. कला में स्नातक की उपाधि लेने के पश्चात् वे 1948 में नकहत प्रकाशन में कविता विभाग में एडिटर के रूप में अपने प्रथम कार्य में जुड़ गए. नकहत प्रकाशन की स्थापना 1948 में ही उनके घनिष्ठ मित्र और प्रेरणा स्त्रोत अब्बास हुसैनी जी ने की थी. इसी समय इब्ने सफी ने विविध विधाओं में अपने हुनर के साथ प्रयोग किया और प्रथम कहानी 'फरार' का प्रकाशन इसी वर्ष हुआ, परन्तु इब्ने सफी इससे संतुष्ट नहीं थे.
फिर 1952 में वह दिन आया जिसने न केवल इब्ने सफी और नकहत प्रकाशन बल्कि संपूर्ण उर्दू उपन्यास जगत को बदल दिया. इब्ने सफी की सलाह पर अब्बास हुसैनी जी ने मासिक जासूसी उपन्यास के प्रकाशन की व्यवस्था की और मार्च 1952 में 'जासूसी दुनिया' का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ. असरार ने पहली बार इब्ने सफी नाम का प्रयोग किया और उनके प्रथम उपन्यास 'दिलेर मुजरिम' ने जासूसी दुनिया (उर्दू) के प्रथम उपन्यास होने का गौरव प्राप्त किया. परन्तु इसी वर्ष अगस्त 1952 में वे पाकिस्तान चले गए. पाकिस्तान जाने के बाद भी भारत में उनके उपन्यास के चाहने वालों से उनका साथ नहीं छूटा और उनके उपन्यास नकहत प्रकाशन के द्वारा निरंतर भारत में प्रकाशित किये जाते रहे.
1955 में उन्होंने इमरान नाम से नए चरित्र को जन्म दिया और प्रसिद्ध इमरान सीरिज की शुरुआत हुयी. इस सीरिज की पहली पुस्तक थी - खौफनाक इमारत जो अगस्त 1955 में कराची और नवम्बर 1955 में भारत में प्रकाशित हुयी.
अक्टूबर 1957 में उन्होंने कराची में असरार प्रकाशन नाम से स्वयं की संस्था की शुरुआत की और पाकिस्तान में जासूसी दुनिया के प्रथम अंक 'ठंडी आग' का प्रकाशन हुआ. भारत में इसी माह इसका प्रकाशन हुसैनी जी के नकहत प्रकाशन द्वारा किया गया.
उर्दू साथित्य में 'जासूसी दुनिया' और 'इमरान सीरिज' जैसे नगीने देने वाले सफी जी की मृत्यु उनकी जमम दिवस के ही दिन जुलाई 26, 1980 को लम्बी बीमारी के पश्चात हो गयी.
इब्ने सफी द्वारा लिखित इमरान सीरिज के उपन्यास 'बेबाकों की तलाश' पर आधारित 'धमाका' नामक फिल्म दिसम्बर 1974 में प्रदर्शित हुयी थी. यह उनके द्ववारा लिखी गयी एकमात्र फिल्म थी. इसमें इब्ने सफी ने अपनी आवाज़ दी थी.
विश्व विख्यात महान जासूसी लेखिका अगाथा क्रिस्टी ने कहा था - "मुझे उर्दू का ज्ञान नहीं है परन्तु मुझे उपमहाद्वीप के जासूसी उपन्यासों की जानकारी है - और इब्ने सफी ही एकमात्र ओरिजनल लेखक हैं."
जासूसी दुनिया - नकहत प्रकाशन
जासूसी दुनिया की वास्तविक शुरुआत भारत में ही मार्च 1952 में नकहत प्रकाशन, इलाहाबाद से श्री अब्बास हुसैनी द्वारा की गयी थी. जैसा की उपरोक्त वर्णित हैं की जासूसी दुनिया का प्रकाशन पाकिस्तान और भारत दोनों में ही अलग-अलग प्रकाशकों के द्वारा साथ-साथ किया जाता रहा था.
नकहत प्रकाशन के द्वारा जासूसी दुनिया का प्रकाशन उर्दू से प्रारंभ किया गया था और मार्च 1952 में प्रकाशित प्रथम उपन्यास थी - दिलेर मुजरिम.
बदती लोकप्रियता को देखते हुए जासूसी दुनिया को जल्द ही हिंदी भाषा में भी प्रकाशित किया जाने लगा. दिसम्बर 1952 में प्रथम अंक - खून की बौछार का प्रकाशन हुआ.
जासूसी दुनिया के करीब 250+ विविध अंक प्रकाशित हुए जिनमे इब्ने सफी की मूल जासूसी दुनिया के साथ इमरान सीरिस का भी प्रकाशन किया गया था. 1990 में हुसैनी जी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र इम्तियाज हैदर ने संपादक की भूमिका निभायी.
जासूसी दुनिया (हिंदी) आवरण -
साभार - मोहम्मद हनीफ
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